Gaya: सनातन धर्म की मोक्ष्य स्थली मानी जानी वाली गयाजी में विष्णु मंदिर है, लेकिन विष्णु भगवान पर चढ़नेवाला तुलसी का एक पौधा वहां नज़र नहीं आएगा। ऐसा कहा गया है गाय जी में पांच वस्तुं ऐसे हैं जो कि शापित है। जिसमे कौआ, फल्गु, तुलसी, ब्रम्हांड व् गाय जिसे सीता माता द्वारा श्राप दिया गया था। यहीं कारण है की इस जगह पर तुलसी का एक पौधा नहीं उगता। महाब्रम्हांड यानी की महापात्रा कभी संतुष्ट नहीं होते, फल्गू नदी में कभी पानी नहीं ठहरता, कौआ हमेशा लड़ झगड़कर ही खाता है। यह एक ऐसी परम्परा हो गई है जो सदियों से चली आ रही हैं। जो आज लोगो की मान्यता हो गई है।
भूख से व्याकुल दशरथ ने सीता के हाथों ले लिया था पिंड
वाल्मीकि रामायण में यह वर्णित है कि जब राम का वनवास हुआ था उस दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के श्राद्ध करने के लिए बिहार गया पहुचें .वहां पर महा ब्रम्हांड ने राम और लक्ष्मण को श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए कहा। इधर भगवान राम और लक्ष्मण नगर की और सामान लाने निकले, उधर सीता नदी के किनारे बैठीं थी। दशरत की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। राम और लक्ष्मण लौटें नहीं थें. .इसी दौरान दशरथ भूख से व्याकुल थे उन्होंने सीता से पिंड मांग कर दी .सीता ने दशरथ की व्याकुलता समझी और खुद ससुर दशरथ को पिंड दान करने का सोचा। उन्होंने फल्गू नदी के साथ साथ, वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण व गाय को साक्षी मान कर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान विध विधान के साथ किया।
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माँ सीता हुई झूठी साबित
राजा दशरथ ने माँ सीता का पिंड स्वीकार कर लिया। जिसके बाद जब राम लौटें तो उन्हें माँ सीता के इस बात पर विशवास नहीं किया। उन्होंने कहा कि पुत्र के बिना पिंडदान संभव नहीं। जिसके बाद सीता ने कहा कौआ, फल्गु, तुलसी, ब्रम्हांड व् गाय इसकी गवाही दे सकते हैं। जिसके बाद राम से पूछने पर इन सब ने इस बात से इंकार कर झूट बोल दिया लेकिन वटवृक्ष ने सत्य का साथ दिया।
सीता ने दिया श्राप
माता सीता ने ब्रम्हांड को कभी संतुष्ट न होने का श्राप दिया, तुलसी को यह श्राप दिया की वह गया की मिटटी में कभी न उगाई जाए।, कौआ को हमेशा लड़ झाग के खाने का श्राप दिया वहीं सच बोलने पर वटवृक्ष को सीता ने आश्रीवाद दिया और उसे लम्बी आयु का भी आशीर्वाद दिया। वहीँ माता सीता ने आशर्वाद देते हुए कहा कि पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति के दीर्घायु की कामना करेंगी