Chhat Puja : कल से नहाय खाये शुरू है। क्या आप जानते है की श्रद्धा भाव से जुड़ा यह पर्व की शुरुआत आखिर कैसे हुई थी। चलिए आपको बताते है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया को सूर्य देव की बहन और ब्रह्म देव की मानस पुत्री माना जाता है. इनका नाम षष्ठी मैया है, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में छठी मइया या छठी मैय्या कहते हैं. छठ पूजा में सूर्य देव के साथ इस देवी का पूजन करते हैं. एक प्रकार से सूर्य देव और छठी मैय्या भाई बहन हुए.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की तो उन्होंने अपने शरीर से के दो हिस्से किए. दायां भाग पुरुष और बायां भाग प्रकृति. प्रकृति के छठे भाग से षष्ठी देवी की उत्पत्ति हुई है, इनको देवसेना भी कहा जाता है. जो व्यक्ति षष्ठी देवी की पूजा करता है, उसके मन की मुराद अवश्य पूरी होती है.
ये है पीछे का कारण
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एक समय की बात है. एक राजा प्रियंवद थे, जिनकी पत्नी का नाम मालिनी था. विवाह के काफी वर्ष बीतने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई. तब उन्होंने कश्यप ऋषि से इसका समाधान पूछा तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने का सुझाव दिया. कश्यप ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और राजा की पत्नी मालिनी को प्रसाद स्वरूप खीर खाने को दिया.
उसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गईं, जिससे राजा प्रियंवद बड़े खुश हुए. कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह भी मृत पैदा हुआ. यह खबर सुनकर राजा बहुत दुखी हो गए. वे पुत्र के शव को लेकर श्मशान गए और इस दुख के कारण अपना भी प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया.
मइया करती है मनोकामना पूरा
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जब वे अपना प्राण त्यागने जा रहे थे, तभी देवी देवसेना प्रकट हुईं. उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि उनका नाम षष्ठी है. हे राजन! तुम मेरी पूजा करो और दूसरों लोगों को भी मेरी पूजा करने को कहो. लोगों को इसके लिए प्रेरित करो. देवी देवसेना की आज्ञानुसार राजा प्रियंवद ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की. उन्होंने यह पूजा पुत्र प्राप्ति का कामना से की थी. छठी मैय्या के शुभ आशीर्वाद से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई. तब से हर साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ पूजा की जाने लगी.
जो व्यक्ति जिस मनोकामना के साथ छठ पूजा का व्रत रखता है और उसे विधि विधान से पूरा करता है, छठी मैय्या के आशीष से उसकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है. लोग पुत्र प्राप्ति और संतान के सुख जीवन के लिए यह व्रत रखते हैं.