Organisation of Islamic Cooperation : सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान ने कहा है कि सऊदी अरब इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी करेगा। बिन फरहान ने कहा कि सऊदी अरब का मिशन इस्लामिक दुनिया की समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखना है. सऊदी अरब को यकीन है कि इस्लामिक एकता और एकता को मजबूत करने और मुस्लिम उम्माह के हितों की रक्षा करने में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
साथ सऊदी विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि किंगडम ने पिछले साल ओआईसी के समर्थन से कई सम्मेलन आयोजित किए, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण ओआईसी सदस्य देशों में भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसियों का सम्मेलन था, जिसमें भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग था। मक्का मुकर्रम समझौते को मंजूरी दी। सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और पर्यटकों को लुभाने के लिए महिलाओं की स्थिति में बदलाव कर रहा है। इसीलिए देश में महिलाओं को मूलभूत अधिकार मिले अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। 1955 में यहां लड़कियों के लिए पहला स्कूल खुला और 1970 में लड़कियों को पहली यूनिवर्सिटी मिली। 2001 में पहली बार महिलाओं को पहचान पत्र दिया गया।
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इस्लाम महिला अधिकारों के बारे में क्या कहता है, यह जानने की जरूरत हर किसी को है। अक्सर इस मुद्दे पर भ्रम पैदा होता है. अक्सर ऐसा देखा आजाता है कि महिलाओं के संदर्भ में कोई भी बेतुका फरमान जारी कर दिया जाता हैं और फिर उसे इस्लामिक फतवे के नाम से प्रचारित किया जाता है।,,अक्सर इसे इस्लाम का एक हिस्सा समझा जाता है, जो पूरी तरह गलत है। दरअसल ऐसी किसी भी बात से इस्लाम का ताल्लुक नहीं है जो मानव अधिकारों की रक्षा न करे। इस्लाम तो सजायाफ्ता कैदी के अधिकारों की भी बात करता है, फिर भला वह आम आदमी के खिलाफ जुल्म कैसे कर सकता है।
कुरआन औरतों का जिक्र करते हुए कहता है. औरत प्रकृति की सबसे कोमल संरचनाओं में से एक है, इनसे वजन न उठवाओ। भारी-भरकम काम पुरुष करें और उन्हें चाहिए कि महिलाओं की हिफाजत करें। जब इस्लाम को किसी महिला के वजन उठाने पर ही एतराज है तो वह उस पर जुल्म की इजाजत कैसे दे सकता है। कुरआन की ज्यादातर आयतें महिला और पुरुष दोनों को संबोधित करते हुए हैं, कुरआन का नजरिया दोनों के लिए समान है, यह महिला और पुरुष में भेदभाव नहीं करता। कुरआन कहता है- हमने महिला और पुरुष दोनों को एक समान आत्मा दी है, दोनों की महत्ता एक समान है।
अक्सर ये कहा जाता है कि इस्लाम ने तलाक के मसले पर औरतों के साथ सख्ती की है। यह पूरी तरह गलत है। इस्लाम की जड़े ही नहीं जानते तो फिर उस पर टिप्पणी कैसे किया जा सकता है. अल्लाह ने जिन चीजों की इंसान को इजाजत दी है, उसमें उसे सबसे ज्यादा नापसंद तलाक है। इस हदीस से सारी बात साफ हो जाती है। इस्लाम तलाक की इजाजत तब देता है जबकि जीवनसाथी का तरीका इस्लामिक न हो, वह आपके साथ एब्यूसिव हो, निर्दयी हो, जालिम हो और भी बहुत कुछ तलाक का मसला बहुत संवेदनशील है, सामान्य जीवन में उसका ख्याल आना भी इस्लाम में गुनाह माना गया है। तो देखते हैं सऊदी प्रिंस महिलाओं के अधिकारों पर बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेज़बानी कैसे करेंगे।