Mahakumbh Stampede: प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले के दौरान बुधवार सुबह एक दर्दनाक हादसा हो गया। भगदड़ मचने से कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। एक डॉक्टर ने एएफपी को बताया कि मरने वालों की संख्या बढ़ भी सकती है, क्योंकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं और उनका इलाज जारी है।
भीड़ ने बढ़ाई मुश्किलें, सुरक्षा व्यवस्था हुई फेल
भारत में धार्मिक आयोजनों में भारी भीड़ कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार हालात और भी भयावह हो गए। लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ पवित्र स्नान के लिए उमड़ी थी, जिससे स्थिति बेकाबू हो गई। घटना के बाद पुलिस और राहत दल तुरंत मौके पर पहुंचे और घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। घटना स्थल पर जूते, कपड़े और अन्य सामान बिखरे पड़े थे, जिससे साफ पता चलता था कि भगदड़ कितनी भयंकर थी।
शवों को स्ट्रेचर पर ले जाते दिखे पुलिसकर्मी
पुलिस अधिकारी पीड़ितों के शवों को मोटे कंबलों में लपेटकर स्ट्रेचर पर ले जाते नजर आए। वहीं, हादसे की खबर मिलते ही लोग अपनों की तलाश में इधर-उधर भागते दिखे। कुंभ मेले के लिए बनाए गए अस्थायी अस्पतालों के बाहर रिश्तेदार अपने प्रियजनों के बारे में जानकारी पाने के लिए बेचैन नजर आए।
पवित्र दिन पर गूंजा चेतावनी का ऐलान
बुधवार को कुंभ का सबसे पवित्र दिन था, जब साधु-संतों की अगुवाई में लाखों श्रद्धालु गंगा और यमुना के संगम में पवित्र स्नान करने वाले थे। लेकिन इस भगदड़ के बाद हालात बदल गए। लाउडस्पीकरों से श्रद्धालुओं से अपील की गई कि वे मुख्य स्नान स्थल पर न जाएं और सुरक्षा नियमों का पालन करें।
डर के साये में लौटने लगे श्रद्धालु
घटना के बाद कई श्रद्धालुओं ने मेले से जल्दी निकलने का फैसला किया। संजय निषाद, जो वहां मौजूद थे, ने बताया, “मैंने हादसे की खबर सुनी और माहौल देखकर परिवार के साथ वापस लौटने का फैसला किया।”
कैसे मची भगदड़?
स्थानीय अधिकारी आकांक्षा राणा के मुताबिक, भगदड़ की शुरुआत कुछ बैरिकेड्स के टूटने के बाद हुई। श्रद्धालु मालती पांडे ने बताया कि जब वह संगम की ओर बढ़ रहे थे, तभी अचानक भीड़ में धक्का-मुक्की शुरू हो गई और कई लोग कुचल गए।
इतिहास में भी हुई हैं ऐसी घटनाएं
कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा आयोजन है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस बार के कुंभ में आयोजकों का अनुमान था कि 26 फरवरी तक 400 मिलियन (40 करोड़) से ज्यादा लोग यहां आएंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने भारी सुरक्षा व्यवस्था की थी। पूरे मेले में सैकड़ों कैमरे और ड्रोन लगाए गए थे, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके।
हालांकि, कुंभ मेले में पहले भी कई दर्दनाक हादसे हो चुके हैं। 1954 में कुंभ के दौरान एक ही दिन में 400 से ज्यादा लोग कुचलकर या डूबकर मारे गए थे, जो भीड़ से जुड़ी सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी।
अब सवाल उठता है – क्या सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे?
हर बार की तरह इस बार भी सुरक्षा के बड़े दावे किए गए थे, लेकिन फिर भी भगदड़ हुई और लोगों की जान चली गई। क्या यह प्रशासन की नाकामी थी या फिर इतनी भारी भीड़ को संभालना ही असंभव था? कुंभ मेला एक आस्था का पर्व है, लेकिन जब यह जानलेवा बन जाए, तो क्या इसे मैनेज करने के तरीके पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है?